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संस्कृत की आधुनिक समय में उपयोगिता (Use of Sanskrit in modern world)

संस्कृत की आधुनिक समय में क्या प्रायोगिक उपयोगिता है — यह सवाल बहुत बार उठता है। हालांकि यह एक प्राचीन भाषा है, फिर भी आज के युग में इसके कई व्यावहारिक उपयोग हैं। नीचे कुछ प्रमुख बिंदुओं में बताया गया है: 1. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में उपयोग हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के मूल ग्रंथ संस्कृत में हैं (जैसे वेद, उपनिषद, भगवद गीता, पुराण आदि)। पूजा-पाठ, मंत्रोच्चारण और यज्ञ आदि संस्कारों में संस्कृत का प्रयोग आज भी होता है। 2. योग और आयुर्वेद में योग सूत्र (पतंजलि), आयुर्वेदिक ग्रंथ (चरक संहिता, सुश्रुत संहिता) आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। प्रामाणिक योग और आयुर्वेद को समझने और सिखाने के लिए संस्कृत की जानकारी जरूरी मानी जाती है। 3. भाषा विज्ञान और शोध में संस्कृत व्याकरण (पाणिनि के सूत्र) को दुनिया के सबसे वैज्ञानिक और संरचित व्याकरणों में माना जाता है। भाषाशास्त्र, तुलनात्मक अध्ययन और भाषाओं के विकास को समझने के लिए संस्कृत उपयोगी है। 4. कंप्यूटर विज्ञान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में संभावनाएं कुछ शोधों में संस्कृत को एक "machine-friendly" भाषा माना गया है, क्योंकि ...

Sanskrit saral vakya nirman.

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कारक चिह्न

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आर्यसमाज संध्या मंत्र

ओ३म भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात ।। ओं शन्नो देवीरभिष्टयsआपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्रवन्तु नः।। ओं वाक वाक – इस मंत्र से मुख का दायां और बायां भाग, ओं प्राणः प्राणः – इससे नासिका के दायां और बायां छिद्र, ओं चक्षुः चक्षुः – इससे दायां और बायां नेत्र, ओं श्रोत्रं श्रोत्रं – इससे दायां और बायां श्रोत्र, ओं नाभिः – इससे नाभि, ओं हृदयम – इससे हृदय, ओं कण्ठः – इससे कण्ठ, ओं शिरः – इससे शिर, ओं बाहुभ्यां यशोबलम – इससे भुजाओं के मूल-स्कन्ध और ओं करतलकरपृष्ठे – इस मंत्र से दोनों हाथों की हथेलियां एवं उनके पृष्ठ भाग ओं भूः पुनातु शिरसि – इस मंत्र से शिर पर, ओं भुवः पुनातु नेत्रयोः – इससे दोनों नेत्रों पर, ओं स्वः पुनातु कण्ठे – इससे कण्ठ पर, ओं महः पुनातु हृदये – इससे हृदय पर, ओं जनः पुनातु नाभ्याम – इससे नाभि पर, ओं तपः पुनातु पादयोः – इससे दोनों पैरों पर, ओं सत्यम पुनातु पुनः शिरसि – इससे पुनः शिर पर और  ओं खं ब्रह्म पुनातु सर्वत्र - ओं भूः, ओं भुवः, ओं स्...

आर्यसमाज प्रार्थना मंत्र

आर्यसमाज प्रार्थना मंत्र ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद भद्रं तन्न आ सुव ॥  यजुर्वेद 30.3 तू सर्वेश सकल सुखदाता शुध्द स्वरूप विधाता है । उसके कष्ट नष्ट हो जाते जो तेरे ढिंङ्ग आता है ॥ सारे दुर्गुण दुर्व्यसनों से हमको नाथ बचा लीजे। मंगलमय गुणकर्म पदारथ प्रेम सिन्धु हमको दीजे॥ हे सब सुखों के दाता ज्ञान के प्रकाशक सकल जगत के उत्पत्तिकर्ता एवं समग्र ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर! आप हमारे सम्पूर्ण दुर्गुणों, दुर्व्यसनों और दुखों को दूर कर दीजिए, और जो कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव, सुख और पदार्थ हैं, उसको हमें भलीभांति प्राप्त कराइये। हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत । स दाधार प्रथिवीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥  यजुर्वेद 13.4 तू ही स्वयं प्रकाश सुचेतन सुखस्वरूप शुभ त्राता है। सूर्य चन्द्र लोकादि को तू रचता और टिकाता है।। पहले था अब भी तूही है घट घट मे व्यापक स्वामी। योग भक्ति तप द्वारा तुझको पावें हम अन्तर्यामी ॥ य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवा: । यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥  यजुर्वेद 25.13 तू ही आत्म...

grade 7 ruchira test chapter 11,12,13

(क) प्रश्नोत्तर- 1. का विहसति?  2. मंदम् क: गच्छति?  3. कस्याः भाषाया:  काव्यसौंदर्यम् अनुपमम्?  4. का भोगकरी?  5. व्यये कृते किं वर्धते?  6. का: अभ्युदयाय प्रेरयंति?  7. किम् विकसति?  8. कौटिल्येन रचितम् शास्त्रं किम्?  (ख) शब्दार्थ 1. भारकारि    2. संस्कृता 3. करालम्     4.  चित्रपतंगा: 5.  विचार्य      6.  मूर्धजा:  7. भ्रातृभाज्यम्  8. निधि: 9.  धृतिः          10.  मता